कुछ तथ्य राज-मिस्त्री संग
साइकिल पर झोला
झोले से झाँकते औज़ार
औज़ार पूरे नहीं
पर मिस्त्री बड़ा
सिर पर गमछा
गमछा या हेलमेट
प्रतिदिन कमाना
रोज़ ही गँवाना
उसका व्यवसाय या
चौराहे पर नीलामी
ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी
दिहाड़ी छोटी-सी
आँखें अनुभवी
पर सूझता नहीं
अधेड़ उम्र
मगर चश्मा नहीं
यह एक वहम
या संकीर्ण सोंच
सब कहेंगे क्या
मिस्त्री अंधराय गए
गजब की थकान
उतारने को दारू
कैसा आशियाना
खुद का घर नहीं
खेले मौत से
पर बीमा तक नहीं
गुरु-शिष्य परम्परा-पोषक
अब खुद शक्कर
सिर्फ़ छह महीने मज़दूरी
मिस्त्री का प्रोमोशन
खुद को समझता इंजीनियर
इंजीनियर साहब दरकिनार
नक्शा समझना सीखा नही
नक्शा ही बनाने लगा
भवन सामग्री आई नहीं
फ़ायदा पक्का
कारस्तानी कुछ-एक की
बदनाम सारे
पीछे उसके बड़ीं कम्पनियाँ तक
साथ में नायाब उपहार
जब मिला इंजीनियर
आया पहाड़ के नीचे
कभी था राज-मिस्त्री
अब है मिस्त्री
भूला खुद को
साथ-साथ प्रतिष्ठा भी
था कभी लाजवाब कारीगर
भूला सारा कौशल
समय है अभी
पहचान अपने को
लगा चश्मा
कर काम दुरुस्त
गर जाना है आगे
तो संगठित हो जा
छोड़ उपहार-लाभ
चाह तकनीकी-प्रशिक्षण
सोंच सुरक्षा के बारे में
लगा हेलमेट माँग बीमा
कब तक रहेगा शोषित
कुछ तो लिख-पढ़
तरक्की चाहिए
बच्चों को भी पढ़ा
पाएगा गौरव व सम्मान
संवार ले खुद को।
२३ नवंबर २००९
Contributed By : Mukesh Kumar Haymukesh2007@gmail.com
साइकिल पर झोला
झोले से झाँकते औज़ार
औज़ार पूरे नहीं
पर मिस्त्री बड़ा
सिर पर गमछा
गमछा या हेलमेट
प्रतिदिन कमाना
रोज़ ही गँवाना
उसका व्यवसाय या
चौराहे पर नीलामी
ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी
दिहाड़ी छोटी-सी
आँखें अनुभवी
पर सूझता नहीं
अधेड़ उम्र
मगर चश्मा नहीं
यह एक वहम
या संकीर्ण सोंच
सब कहेंगे क्या
मिस्त्री अंधराय गए
गजब की थकान
उतारने को दारू
कैसा आशियाना
खुद का घर नहीं
खेले मौत से
पर बीमा तक नहीं
गुरु-शिष्य परम्परा-पोषक
अब खुद शक्कर
सिर्फ़ छह महीने मज़दूरी
मिस्त्री का प्रोमोशन
खुद को समझता इंजीनियर
इंजीनियर साहब दरकिनार
नक्शा समझना सीखा नही
नक्शा ही बनाने लगा
भवन सामग्री आई नहीं
फ़ायदा पक्का
कारस्तानी कुछ-एक की
बदनाम सारे
पीछे उसके बड़ीं कम्पनियाँ तक
साथ में नायाब उपहार
जब मिला इंजीनियर
आया पहाड़ के नीचे
कभी था राज-मिस्त्री
अब है मिस्त्री
भूला खुद को
साथ-साथ प्रतिष्ठा भी
था कभी लाजवाब कारीगर
भूला सारा कौशल
समय है अभी
पहचान अपने को
लगा चश्मा
कर काम दुरुस्त
गर जाना है आगे
तो संगठित हो जा
छोड़ उपहार-लाभ
चाह तकनीकी-प्रशिक्षण
सोंच सुरक्षा के बारे में
लगा हेलमेट माँग बीमा
कब तक रहेगा शोषित
कुछ तो लिख-पढ़
तरक्की चाहिए
बच्चों को भी पढ़ा
पाएगा गौरव व सम्मान
संवार ले खुद को।
२३ नवंबर २००९
Contributed By : Mukesh Kumar Haymukesh2007@gmail.com
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