Saturday, April 11, 2020

संसार को प्रसन्न करना कठिन होना !


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 कुछ भी करें, लोग आलोचना करते ही हैं;  इसलिए उस ओर ध्यान न देते हुए स्वयं को जो योग्य लगता है, वैसा आचरण करना ही हितदायक है ।  एक बार एक पिता-पुत्र एक घोडा लेकर जा रहे थे । पुत्रने पिता से कहा ‘‘आप घोडेपर बैठें, मैं पैदल चलता हूं ।’’ पिता घोडेपर बैठ गए । मार्ग से जाते समय लोग कहने लगे, ‘‘बाप निर्दयी है । पुत्र को धूप में चला रहा है तथा स्वयं आराम से घोडेपर बैठा है । यह सुनकर पिता ने पुत्र को घोडेपर बैठाया तथा स्वयं पैदल चलने लगे । आगे जो लोग मिले, वे बोले, ‘‘देखो पुत्र कितना निर्लज्ज है ! स्वयं युवा होकर भी घोडेपर बैठा है तथा पिता को पैदल चला रहा है ।’’ यह सुनकर दोनों घोडेपर बैठ गए । आगे जानेपर लोग बोले, ‘‘ये दोनों ही भैंसेके समान हैं तथा छोटेसे घोडेपर बैठे हैं । घोडा इनके वजन से दब जाएगा ।’’ यह सुनकर दोनों पैदल चलने लगे । कुछ अंतर चलनेपर लोगों का बोलना सुनाई दिया, ‘‘कितने मूर्ख हैं ये दोनों ? साथ में घोडा है, फिर भी पैदल ही चल रहे हैं ।’’  तात्पर्य : कुछ भी करें, लोग आलोचना ही करते हैं; इसलिए लोगों को क्या अच्छा लगता है, इस ओर ध्यान देने की अपेक्षा ईश्वर को क्या अच्छा लगता है, इस ओर ध्यान दीजिए । सर्व संसार को प्रसन्न करना कठिन है, ईश्वर को प्रसन्न करना सरल है ।

Thursday, March 26, 2020

मोम का शेर

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सर्दियों के दिन थे, अकबर का दरबार लगा हुआ था। तभी फारस के राजा का भेजा एक दूत दरबार में उपस्थित हुआ।
राजा को नीचा दिखाने के लिए फारस के राजा ने मोम से बना शेर का एक पुतला बनवाया था और उसे पिंजरे में बंद कर के दूत के हाथों अकबर को भिजवाया, और उन्हे चुनौती दी की इस शेर को पिंजरा खोले बिना बाहर निकाल कर दिखाएं।
बीरबल की अनुपस्थिति के कारण अकबर सोच पड़ गए की अब इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। अकबर ने सोचा कि अगर दी हुई चुनौती पार नहीं की गयी तो जग हसायी होगी। इतने में ही परम चतुर, ज्ञान गुणवान बीरबल आ गए। और उन्होने मामला हाथ में ले लिया।
बीरबल ने एक गरम सरिया मंगवाया और पिंजरे में कैद  मोम के शेर को पिंजरे में ही पिघला डाला। देखते-देखते मोम  पिघल कर बाहर निकल गया ।
अकबर अपने सलाहकार बीरबल की इस चतुराई से काफी प्रसन्न हुए और फारस के राजा ने फिर कभी अकबर को चुनौती नहीं दी।
Moral: बुद्धि के बल पर बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है.