Saturday, May 7, 2011

हिन्दी लोकोक्ति



ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है. संसार में कोई सुखी है तो कोई दु:खी, कोई धनी है तो कोई निर्धन. ईश्वर की माया समझ में नहीं आती. संसार में कोई सुन्दर है तो कोई कुरुप, कोई स्वस्थ है तो कोई रुग्ण, कोई करोड़पति है तो कोई अकिंचन. इसीलिए कहा गया है कि ईश्वर की माया... छाया

उत्तम को उत्तम मिले, मिले नीच को नीच : जो आदमी जैसा होता है उसको वैसा ही साथी भी मिल जाता है. पर भाई, ऐसा रूप तो न आँखों देखा न कानों सुना. यह तो राजकन्या के योग्य ही है. इसमें उसने अनुचित क्या किया, क्योंकि जैसी सुन्दर वह है ऐसा ही यह भी है.
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान : खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है. यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती...निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं.
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका? जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा.
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डाँटना, फटकारना या दोषी ठहराना. आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो.
उल्टे बाँस बरेली को : बरेली में बाँस बहुत पैदा होता है. इसी से उसको बाँस बरेली कहते हैं. यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है. दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है. इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना।
उसी की जूती उसी का सर : किसी को उसी की युक्ति से बेवकूफ बनाना. दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ.
ऊँची दुकान फीका पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो पर गुण कम हों. नाम ही नाम है, गुण तो ऐसे-वैसे ही हैं. बस ऊँची दुकान फीका पकवान समझ लो.
ऊँट घोड़े बहे जाए गधा कहे कितना पानी : जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे तब ऐसा कहते हैं.
ऊँच बिलैया ले गई, हाँ जी, हाँ जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात भी कहे और दूसरा उसकी हामी भरे.
ऊधो का लेना न माधो का देना : जो अपने काम से काम रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में उक्ति.
एक अनार सौ बीमार : एक चीज के बहुत चाहने वाले. जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है.
एक और एक ग्यारह होते हैं : मेल में बड़ी शक्ति होती है. यदि तुम दोनों भाई मिलकर काम करोगे तो कोई तुम्हारा सामना न कर सकेगा.
एक कहो न दस सुनो : यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.
एक चुप हजार को हरावे : जो मनुष्य चुप अर्थात शान्त रहता है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं.
एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी : एक कुटुम्ब के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम अन्तर होता है.
एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा : कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं.
एक ही थैले के चट्टे-बट्टे : एक ही प्रकार के लोग. लो और सुनो, सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है : यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है।
एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती : किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।
ऐरा गैरा नत्थू खैरा : मामूली आदमी. कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था।
ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय : बूढ़े और बेकार मनुष्य को कोई भोजन और वस्त्र नहीं देता. कमाते-धमाते तो कुछ हैं नहीं, केवल खाने और बच्चों को डांटने-फटकारने से मतलब है...ऐसे बूढ़े...
ओछे की प्रीति, बालू की भीति : बालू की दीवार की भाँति ओछे लोगों का प्रेम अस्थायी होता है।
ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्य डर : कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता. बेचारी मिसेज बेदी ओखली में सिर रख चुकी थी। तब मूसलों से डर कर भी क्या कर लेतीं?
औंधी खोपड़ी उल्टा मत : मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है।
औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल : जो मनुष्य अवसर से चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल पश्चाताप उसके हाथ आता है।
कपड़े फटे गरीबी आई : फटे कपड़े देखने से मालूम होता है कि यह मनुष्य गरीब है।
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर : समय पर एक-दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
कर ले सो काम, भज ले सो राम : जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए।
करनी खास की, बात लाख की : जब कोई निकम्मा आदमी बढ़-चढ़कर बातें करता है।
ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती : किसी को इतनी थोड़ी चीज़ मिलना कि उसकी तृप्ति न हो।
और बात खोटी सही दाल रोटी : संसार की सब चीज़ों में भोजन ही मुख्य है।
कंगाली में आटा गीला : मुसीबत पर मुसीबत आना. पहले परीक्षा में फेल हुआ, फिर नौकरी छूटी और घर जाते समय रेल में संदूक रह गया। इस बार मेरे साथ बड़ी बुरी बीती, कंगाली में आटा गीला हो गया।
कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना : जो मिल जाए उसी पर संतुष्ट रहना चाहिए।
कमजोर की जोरू सबकी सरहज गरीब की जोरू सबकी भाभी: कमजोर आदमी को कोई गौरव नहीं प्रदान करना, सब उसकी स्त्री से हँसी-मजाक करते हैं।
करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का : छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है।
करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत : जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो।
खग जाने खग ही की भाषा : जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है.
खर को गंग न्हवाइए तऊ न छोड़े छार : चाहे कितनी ही चेष्टा की जाय पर नीच की प्रकृति नहीं सुधरती.
खरादी का काठ काटे ही से कटता है : काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है.
खरी मजूरी चोखा काम : नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.
खल की दवा पीठ की पूजा : दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
खलक का हलक किसने बंद किया है : संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है?
खाइए मनभाता, पहनिए जगभाता : अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए.
खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय : केवल रूप बदलने से गुण नहीं बदलता.
खाली दिमाग शैतान का घर : जो मनुष्य बेकार होता है उसे तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं.
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे : लज्जित होकर बहुत क्रोध करना.
खुदा गंजे को नाखून न दे : अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.
खूंटे के बल बछड़ा कूदे : किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना.
खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो : जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है.
खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी : दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ.
खेत खाय गदहा मारा जाय जोलहा : जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे.
खेती खसम सेती : खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
खेल खतम, पैसा हजम : सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं.
खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है.
खोदा पहाड़ निकली चुहिया : बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना.
खौरही कुतिया मखमली झूल : जब कोई कुरूप मनुष्य बहुत शौक-श्रृंगार करता है या सुन्दर वेश-भूषा धारण करता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है.
गंजी कबूतरी और महल में डेरा : किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं.
गंजी यार किसके, दम लगाए खिसके : स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं.
गगरी दाना सूत उताना : ओछा आदमी थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है.
गढ़े कुम्हार भरे संसार : कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं। एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
गधा मरे कुम्हार का, धोबिन सती होय : जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है.
गधे के खिलाये न पुण्य न पाप : कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है.
गये थे रोजा छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी : यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.
गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई : गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.
कंगाली में गीला आटा : धन की कमी के समय जब पास से कुछ और चला जाता है.
गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : जिसका काम हो वह अधिक परवाह न करे, किन्तु दूसरा आदमी अत्यधिक तत्परता दिखावे.
गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिसके पास धन रहता है वह निश्चिंत रहता है.
गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है.
गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़ै थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है.
गाल बजाए हूँ करैं गौरीकन्त निहाल : जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे : जब विपत्ति आने को होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है.
गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना.
गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी : यदि पास में धन होगा तो साथी या खाने वाले भी पास आएँगे.
गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया : जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता है तब ऐसा कहते हैं.
गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है.
गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं.
गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.
गों निकली, आँख बदली : स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है.
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास में रहने पर भी किसी वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.
गौरी रूठेगी अपना सोहाग लेगी, भाग तो न लेगी : जब कोई आदमी किसी नौकर को छुड़ा देने की धमकी देता है तब नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है.
ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती : कोई भी व्यक्ति अपनी चीज को बुरी नहीं कहता.
घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम : संकोच करने की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है.
घड़ी में तोला घड़ी में माशा : जो जरा-सी बात पर खुश और जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है.
घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते : मिलते हुए धन या वृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए.
घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते : अपने घर आने पर कोई बुरे आदमी को भी नहीं दुतकारता.
घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना.
घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है.
घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है.
घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता.
घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है.
घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति.
घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है.
घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति.
घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए
चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.
चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित.
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख.
चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है.
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता.
चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं.
चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति.
चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.
बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.
चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.
चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है.
चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है.
चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है.
चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.
चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.
छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.
छोटा मुँह बड़ी बात : छोटे मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना.
जंगल में मोर नाचा किसने देखा : जब कोई ऐसे स्थान में अपना गुण दिखावे जहाँ कोई उसका समझने वाला न हो.
जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात : अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.
जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त : सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है.
जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर : जब कष्ट सहने के लिए तैयार हुआ हूँ तब चाहे जितने कष्ट आवें, उनसे क्या डरना.
जब तक जीना तब तक सीना : जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है.
जबरा मारे और रोने न दे : जो मनुष्य जबरदस्त होता है उसके अत्याचार को चुपचाप सहना होता है.
जर, जोरू, ज़मीन जोर की, नहीं और की : धन, स्त्री और ज़मीन बलवान् मनुष्य के पास होती है, निर्बल के पास नहीं.
जल की मछली जल ही में भली : जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.

गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे : किसी को चाहे कुछ न दे, पर उससे मीठी बात तो करे.

पुनर्मिलन

दूर कहीं एक तारा टूटा
पास यहीं एक कोयल कूकी

पास यहीं किसी ने यादें उगायीं
दूर कहीं किसी ने हिचकी ली

दूर कहीं किसी के नयनों में अश्रु छलके
पास यहीं किसी ने आँखे पोंछी

पास यहीं किसी ने ऊपर उड़ता जहाज देखा
दूर कहीं किसी ने चाँद को आँखों से पिया

दूर कहीं किसी ने उपवास किया
पास यहीं किसी ने सालों बाद खट्टे बेर चखे

पास यहीं किसी ने नज़्म पढ़ी
दूर कहीं किसी ने सितार छुआ

दूर कहीं किसी से लिपट गया एक मासूम बालक
पास यहीं किसी के काँधे झूल गया एक नन्हा बालक

पास यहीं से कोई काँपता हुआ उठा, चला और सो गया
दूर कहीं से कोई काँपता हुया उठा, चला और सो गया

About India








  1. India is the world's largest, oldest, continuous civilization.
  1. India never invaded any country in her last 10000 years of history.
  1. India is the world's largest democracy.
  1. Varanasi, also known as Benares, was called "the ancient city" when Lord Buddha visited it in 500 B.C.E, and is the oldest, continuously inhabited city in the world today.
  1. India invented the Number System. Zero was invented by Aryabhatta.
  1. The World's first university was established in Takshashila in 700BC. More than 10,500 students from all over the world studied more than 60 subjects. The University of Nalanda built in the 4th century BC was one of the greatest achievements of ancient India in the field of education.
  1. Sanskrit is the mother of all the European languages. Sanskrit is the most suitable language for computer software - a report in Forbes magazine, July 1987.
  1. Ayurveda is the earliest school of medicine known to humans. Charaka, the father of medicine consolidated Ayurveda 2500 years ago. Today Ayurveda is fast regaining its rightful place in our civilization.
  1. Although modern images of India often show poverty and lack of development, India was the richest country on earth until the time of British invasion in the early 17th Century. Christopher Columbus was attracted by India's wealth.
  1. The art of Navigation was bornin the river Sindhu 6000 years ago. The very word Navigation is derived from the Sanskrit word NAVGATIH. The word navy is also derived from Sanskrit 'Nou'.
  1. Bhaskaracharya calculated the time taken by the earth to orbit the sun hundreds of years before the astronomer Smart. Time taken by earth to orbit the sun: (5th century) 365.258756484 days.
  1. The value of pi was first calculated by Budhayana, and he explained the concept of what is known as the Pythagorean Theorem. He discovered this in the 6th century long before the European mathematicians.
  1. Algebra, trigonometry and calculus came from India. Quadratic equations were by Sridharacharya in the 11th century. The largest numbers the Greeks and the Romans used were 106 whereas Hindus used numbers as big as 10**53(10 to the power of 53) with specific names as early as 5000 BCE during the Vedic period. Even today, the largest used number is Tera 10**12(10 to the power of 12).
  1. IEEE has proved what has been a century old suspicion in the world scientific community that the pioneer of wireless communication was Prof. Jagdish Bose and not Marconi.
  1. The earliest reservoir and dam for irrigation was built in Saurashtra.
  1. According to Saka King Rudradaman I of 150 CE a beautiful lake called Sudarshana was constructed on the hills of Raivataka during Chandragupta Maurya's time.
  1. Chess (Shataranja or AshtaPada) was invented in India.
  1. Sushruta is the father of surgery. 2600 years ago he and health scientists of his time conducted complicated surgeries like cesareans, cataract, artificial limbs, fractures, urinary stones and even plastic surgery and brain surgery. Usage of anesthesia was well known in ancient India. Over 125 surgical equipment were used. Deep knowledge of anatomy, physiology, etiology, embryology, digestion, metabolism, genetics and immunity is also found in many texts.
  1. When many cultures were only nomadic forest dwellers over 5000 years ago, Indians established Harappan culture in Sindhu Valley (Indus Valley Civilization).
  1. The four religions born in India, Hinduism, Buddhism, Jainism, and Sikhism, are followed by 25% of the world's population.
  1. The place value system, the decimal system was developed in India in 100 BC.
  1. India is one of the few countries in the World, which gained independence without violence.
  1. India has the second largest pool of Scientists and Engineers in the World.
  1. India is the largest English speaking nation in the world.
  1. India is the only country other than US and Japan, to have built a super computer indigenously.
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Thursday, May 5, 2011

प्रज्ञा सुभाषित-1

1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दु: और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहींं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
2) ज्ञान का अर्थ है-जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक्करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है।
3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्द्ेश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
5) कुचक्र, छद् और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा।
6) जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है।
7) समर्पण का अर्थ है-पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण में उसे परिणत करते रहना।
8) मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। 9) सबसे महान्धर्म है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनना।
10) सद्व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है।
11) जिनका प्रत्येक कर्म भगवान्को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है।
12) कोई भी कठिनाई क्यों हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा।
13) सत्संग और प्रवचनों का-स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है।
14) सब ने सही जाग्रत्आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है।
15) साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है।
16) आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है।
17) जैसे कोरे कागज पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है।
18) योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्पूर्ण है।
19) यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति धर्म का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है।
20) जीवन के प्रकाशवान्क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते।
21) प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन्स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके।
22) बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है।
23) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित हो, वह भयंकर है।
24) भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं।
25) हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना मानव मात्र का कल्याण है।
26) प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके।
27) धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो।
28) अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
29) शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है?
30) जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है।
31) आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं। अनधिकारी ध्र्मोपदेशक खोटे सिक्के की तरह मात्र विक्षोभ और अविश्वास ही भड़काते हैं।
32) इन दिनों जाग्रत्आत्मा मूक दर्शक बनकर रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
33) जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमेंं महान्परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है-प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ।
34) दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता।
35) आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
36) चरित्रवान्व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है।-वाङ्गमय
37) व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों मेंं सामथ्र्यवान्नहीं बन सकता है।-वाङ्गमय
38) युग निर्माण योजना का लक्ष्य है-शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना।-वाङ्गमय
39) भुजार्ए साक्षात्हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश, इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता नहीं।
40) विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता।- वाङ्गमय
41) मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है।-वाङ्गमय
42) धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है।-वाङ्गमय
43) जीवन साधना का अर्थ है- अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना।-वाङ्गमय
44) निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है।-वाङ्गमय
45) आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।-वाङ्गमय
46) हम कोई ऐसा काम करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे।-वाङ्गमय
47) अपनी दुCताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती हैं, पर अपने आप से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता।
48) किसी महान्उद्देश्य को चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना।
49) महानता का गुण तो किसी के लिए सुरक्षित है और प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है।
50) सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहींं जाता।
51) खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा।
52) मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
53) साधना का अर्थ है-कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना।
54) सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है।
55) असत्से सत्की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
56) किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
57) अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
58) उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है-दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
59) वही जीवति है, जिसका मस्तिष्क ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
60) चरित्र का अर्थ है- अपने महान्मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना।
61) मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं।
62) अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान्की सच्ची पूजा है।
63) जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ मेंं है।
64) हर वक्त, हर स्थिति मेंं मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये।
65) वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं।
66) वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं।
67) मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है।
68) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
69) विषयों, व्यसनों और विलासों मेंं सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है।
70) कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
71) गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
72) परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों हो।
73) ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
74) वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं-स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
75) ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों मेंं और कोई दान नहीं।
76) केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
77) इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है।
78) उत्तम पुस्तकें जाग्रत्देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
79) शान्तिकुञ्ज एक विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारी सतयुगी सपनों का महल है।
80) शांन्किुञ्ज एक क्रान्तिकारी विश्वविद्यालय है। अनौचित्य की नींव हिला देने वाली यह संस्था प्रभाव पर्त की एक नवोदित किरण है।
81) गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्त्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है।
82) नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है-शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ।
83) धर्म का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
84) मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
85) सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
86) हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है।
87) संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है।
88) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
89) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
90) निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है।
91) दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
92) सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है।
93) अपनी महान्संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
94) 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
95) चरित्रवान्व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद्भक्त हैं।
96) ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान्है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
97) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित हो, वह भयंकर है।
98) परमात्मा जिसे जीवन मेंं कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है।
99) देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं।
100) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।